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हद से पार है खुद।


हद से पार हैं खुद।


   
      हम पशु पक्षियों से  ज्यादा गये बीते है हमारी क्रूरता हमारा उदाहरण पेश करती है की मनुस्यता की हद कहां तक सीमित है ।
 (१) हमें संस्कार  युक्त होना जरूरी है किन्तू अनाचार मैं लिप्त है ।
(२) हमारी वाणी कोमल कपोलित होना चाहिए । लेकिन कठोरता के शब्द जीभ पर हमेशा रहते है ।
 (३) सम्मान करना हमारी प्रमुखता है ।
लेकिन अपमान की भावना जागृत रहती है
(४) रिश्ते कायम रखे  रहें जो शोक हर लेते है
परंतु तोडना उचित समझते है ।
(५) दया हमारा मुकुट है  ।
लेकिन धारण करने मैं शर्म है

हद से  पार की व्याख्या ।


  1.  संस्कारी न होकर हम दूसरी कंट्री की दिनचर्या इस्तेमाल करते है । जैसे अमर्यादित पहनावा उठने बैठने के नियम तोडना जो कि हमारी रीति रिवाज के विरूद्ध है ं के संगत मॉ बाप बहिन भाई  सा परिवार के सामने पशु पक्षी के जैसा (आनंद विहार करते है ) यही कारण है कि दुनियां मैं घिनौने काम की शिक्षा हमने ही शुरु की है जिसमे वहुत कुछ सामिल है ।
  2.   वाणी शब्द लोहे से अधिक कठोर होता है लोहेको किसी  भी रूप मै       परिवर्तित कर सकते है ।    कितु वाणी को नहीं  अर्थात बोला हुआ कटु शब्द जीवन पर्यंत नहीं   भूलता  जबकि कठोर लोहे की पहली स्थिति हम याद नहीं रखते कि वह लोहा किसी रूप मै वदलने से पहले कैसा था किंतु वाणी से निकला हार्ड वाक्य कांटे के समान सारी जिंदगी अटकता हैऔर उसकी अवस्था याद रहती है कि मुझसे यह कहा गया था।
  3.  सम्मान करना तो ठीक है, बडो के आने पर अभिवादन के बजाय जड की तरह स्थिर बैठे रहते है ।और सम्मान करना अपनी ठिठोली और हलका पन समझते है  । इसलिए अपमान का भाव पैदा करते हुऐ आगे  मेरे कोई नहीं आये( सोच )जगह वनालेते है ।
  4. रिस्ते मैं  पता ही नहीं चलता की किसका कौन है और क्या संबंध है मतलब गुरू ज्येष्ठ भ्राता काका पूज्य रिस्तेदार के समक्ष उठ खडे होने पर अपने को लोकल क्वालिटि का समझते है ।
  5. दया हमारा मानव पन उजागर करता है किंतु गिरे हुये को ह्दय लगाने से ग्लानि होती है ।फिर  भी कहते एक नारा भाई चारा । कई व्यथाऐं हम अपनी ऑखो के सामने देखते है पर अपने साथ कदापि नहीं होगा की एक अनुभूति करते हुऐ बढ जाते है । किंतु कहा सही है । रखपत तो रखापत । आप हम पर दया करेंगे तो आप पर कोई और करेगा  ।  
पोस्ट अच्छी लगे तो कमेट जरूर करना ना लगे तो भी ।

हमारे ब्लॉग पर बहुत अच्छी चींजे पढने को मिलेंगी  ।

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