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मृतक का पुन: जीवन प्रसंग ।

मृतक का पुन: जीवन विषय मै प्रसंग।


राजा युधिष्ठिर- क्या आपने कभी कोई ऐसा पुरूष देखा सुना है जो एक वार मरकर फिर जी उठा हो?
भीष्म जी-राजन पूर्वकाल मै नैमिषारण्य क्षेत्र मै गृध्र और गीदड के संबाद रूप प्रसंग सुनाता हूं  किसी ब्रहामण के  बडी कठिनता से प्राप्त वालक वाल्यवस्थामै ही चल बसा । तब उसके सम्वन्धी शोक से रोते विलखते उसे लेकर शमशान मे गये ।बालक को हदृय से लगाकर करूणक्रदंन करने लगे ।

 ब्रहामणों ने बालक पृथ्वीपर रख तो दिया पर लौटने का साहस न कर सके । उनके रोने का शब्द सुनकर एक गृध्र वहां आया और कहने लगा अब तुम इस बालक को छोडकर चले जाओ व्यर्थ विलंम्ब मत करो । जो लोग अपने मृतक सम्वंधियों को लेकर शमशान आते है और जो नहीं आते उन सभी को अपनी आयु समाप्त होने पर संसार से कूचकरना ही पडता है ।

यह शमशान भूमि गृध्र और गीदडो से भरी हुई है यहां हर जगह नरकंकाल दिखाई पड रहे है ; इसलिऐ प्राणियों को भयावह है,इसलिऐ आप लोगो को नहीं ठहरना चाहिए प्राणि की गति ही ऐसी है की कालके गालमें पडजाने पर कोई नहीं लौटता।

मृतलोक  मै आया उसे जाना जरूर होगा,देखो सूर्यभगवान अस्ताचल के अंञचलमै पहुंच चुके है बालक का मोह छोडकर अपने घर लौट जाओ ।उस गृध्र की बाते सुनकर सब  लोग बालक को पृथ्वीपर लिटाकर रोते विलखते चलने लगे ।

इतने मै एक कालेरंग का गीदड अपनी मॉदसे निकला औा कहने लगा मनुष्यो वास्तवमें तुम बडे स्नेहशून्य हो अरे मूर्खो अभी तो दिन डूवाही नहीं डरते क्यों हो कुछ तो स्नेह निभाओ किसी शुभ घडी के प्रभाव से बालक जी उठे ।तुम कैसे निर्दयी हो तिलाञजलि देकर इस नन्हें से बालक को पृथ्वीपर कुशा विछाकर सुला दिया है और इस भीषण शमशान मे छोडकर जाने को तैयार हो गए हो इस बालक मै तुम्हारा प्रेम नहीं है ।

देखो पशुपक्षियों का अपने बच्चों मै कितना प्रेम होता है उनका पालन पोषण करने पर भी उन्हैं इस लोक या परलोक मै कोई फल नहीं मिलता परंतु मनुष्योमै तो स्नेह ही कहां है ।

यह बालक तुम्हारा वंशधर है, इसे छोडकर तुम क्यों जाना चाहते हो? अरे! अभी देरतक आंसू बहाओ प्यार के साथ जी भकरकर देखो शरीर छूटनेपर शमशान तक उसका साथ परिवार वाले हि दिया करते है,और कोई नहीं हाय! कमलनयन बालक को छोडकर जाने के लिऐ तुम्हारे पैर कैसे उठते है? गीदड की ये बाते सुनकर वे सब लोग वापिस शव के पास लौट आये।

अब गिद्ध कहने लगा, अरे बुद्धिहीन मनुष्यों!तुच्छ गीदड की बातो मै आकर लौट आये? (थोथे काठ) घुनें हुऐ के समान पंचभूतोके छोडे हुये चेष्टाहीन शरूर को शोक क्यो करते हो ।
मनुष्य अपने पूर्व जनंम के अनुसार ही सुख दुख लेकर जन्मता है पिता के कर्मो से पुत्र और पुत्र के कर्म से पिता बधां हुआ नही होता है ।सब अपने पाप पुन्य से बधें होते है और अंत मैं मृत्यू मार्ग से ही जाते है ।शोक और दीनता छोड दो पुत्र मोह से दूर हो जाओ इसे यहीं मैदान मै छोडकर चले जाओ कोई कैसा ही प्यारा हो किसी वन्धु वान्धव देर तक यहां नहीं  ठहरते है ।वुुद्धिमान हो या मूर्ख घनवान हो या निर्धन कर्मोको लेकर काल के आधीन होना ही पडता है ।काल सबको निगल जाता है इस ससार की ऐसी ही गति है ।

इसपर गीदड ने कहा- अरे तुम तो पुत्रस्नेह मै भरकर  इतने चिंतातुर    थे किंतु मन्दमति गिद्ध ने प्रेम को शिथिल कर दिया है इसकी बातो मै आकर तुम बालक को छोडकर चलने को तैयार हो गये हो आखिर यह बालक तुम्हारे ही रक्त खून से बना है तुम्हारे आधे शरीर के समान है इसे वन मै छोडकर कहा जओगे जबतक सूर्यास्त न हो तबतक तो ठहरो उसके बाद या साथ ले जाना या यहीं रहना।

गिद्धने कहा- मनुष्यो! मुझे जन्म लिये एक हजार वर्ष हो गये , किन्तु मैने मरने के वाद किसी को जीवित होते नही देखा है तुम्हारा प्रेम तो व्यर्थ है मेरी कठोर वाते हेतुगर्भित है ।और| मोक्ष धर्म से संवधित है इसलिए मेरी बात मानकर घर चले जाओ कांमोको याद करके मनुष्यका शोक दुगना हो जाता है ।
गिद्धकी- की बाते सुनकर सव चलपडे तब ।

गीदड कहने लगा भैया देखो बालक का रंग कैसा सोने के समान है यह एक दिन अपने पितरो को पिंडदान करेगा इस गीधकी बातो मै आकर इसे छोडे क्यों जाते हो। रोने धोने से काम तो नहीं चलेगा हां तुम्हारा संताप अवशय वढजाएगा एकवार राजर्षि श्वेता बालक भी मर गया था लेकिन धर्मनिष्ठ स्वेत ने जीवित कर लिया था।इसी प्रकार तु्म्हे कोई सिद्ध मुनि या देवता मिल जांय और वे रोतेदेखकर कृपा कर सकते है । इसलिए रोते रहो और वैठो, गीदड के इस प्रकार कहने पर सभी ब्रहामण लोग  फिर शमशान मै लौट आये
और बालक का शव गोद में रखकर फूट२ कर रोने लगे ।उनका रूदन सुनकर (गिद्ध ) फिर पास आकर कहने लगा अरे लोगो  इस बालक को ऑसूओं से क्यो भिगोते इसकी मिट्टूी क्यो खराब करते हो यह धर्मराज की आज्ञा से सदा को सो गया है तपश्वूी धनी वुद्धिमान सब मोंत के हांथ पडते और शमशान मै आश्रय लेते है ।
अब इसकी पुन: जीने की कोई आशा नहीं जो एकवार देह से नाता तोडता वह फिर उसी सरीर मै नहीं आता हां अगर ब्रहमा बिष्णू रूद्र वर दें तो जीवित हो सकता है ।रोने से तो जीवित नहीं हो सकता,अत: बुद्धिमान को अप्रिय आचरण कटु भाषण त्याग देना चाहिए सत्य, ज्ञान,न्याय,सृजनता करनी चाहिए इस बालक के लिऐ रोकर क्या कर लोगे। 
गिद्ध के ऐसा कहने पर- बालक को वहीं छोडकर रोते बिलखते घर लौटने लगे इसी समय गीदड फिर कहने लगा ,अरे! तुम्हें धिक्कार है तुम इस  गीधकी बातो मै आकर मूर्खों की तरह पुत्रस्नेह को तिलांञजलि देकर जा रहे हो यह गृध तो बडा पापी है ।
तुम इसकी बात मानकर रूपवान कुल की शान वढाने वाले बालक को छोडकर चलने लगे मै सच कहता हूं की मुझे अपने मन मै यह बालक जीवित जान पडता है ।इसका नाश नहीं हुआ है देखो तुम्हारी सुख की घडी समीप है निश्चय रखो सुख अवश्य मिलेगा।
गिद्ध वोला- यह वन भूतप्रेतो से भरा पडा है इसमें अनेको राक्षस यक्ष रहते है इसलिए यह भयानक है सूर्यास्त से पहले शव का क्रियाकर्म कर दो इस स्थान मे रहने वाले विकराल जीव भयानक है रात मैं परेशान करेंगे वे मॉसाहारी है  यह वन भूमि डरावनी है । यहां डर लगेगा बालक को छोडकर चले जाओ।

गीदड़ ने कहा ठहरो ठहरो जब तक सूर्य का प्रकाश है तब तक यहां किसी प्रकार का खटका नहीं है उस समय तक तो तुम   स्नेहपूर्वक इस बालक को देखते  रहो यदि तुम इस गिद्ध की कठोर  और घबराहट  वाली बातों में आ जाओगे तो इस बालक से हाथ धो बैठोगे 

वे गृद्ध और गीदड दोनो ही भूखे थे गृद्ध यही कहता रहा की अब सूर्यास्त हो गया और गीदड अभी नहीं हुआ है वास्तवमै वे दोनो ही अपना२ काम वनाने मैं तुले थे दोनो ज्ञान की बातों  मै कुशल थे इसलिए उनकी बात मानकर कभी लौट आते कभी घर जाने को तैयार हो जाते। 
अपना काम बनाने मै कुशल गृद्ध और गीदड ने उन्हे चक्कर मै डालदिया और वे शोक वश वही रोते हुये खडे रहे । पार्वती की प्रेरणा से शिवजी वहां से निकले और बालक को जीवित कर सौ वर्ष की आयु दी तथा उन दोनो को भूख न लगने का वरदान दे दिया।

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