अपाहिज की खातिर ।
अपाहिज को इगनोर मत करें-
- आश्रितो और अपाहिज ही हमारी नीव का पत्थर है जिनके वलबूते पर हम बंगला महल मै शुक्रगुजार एवं शाही नाम से पुकारे जाते है
- हम अपने लिऐ जी रहे वल्कि दूसरों के लिऐ यह वाक्य तो सिकुडकर रह रहा है क्योंकि हम अपनी औपचारिकता पर ही वल देते हैअपाहिज की खातिर नहीं ऐसा इसलिए की वह हमारी खातिर से वाकिव रहता है और हमारी हर गतिविधि को खंडित नही होने देता ना ही हमें परेशान देखना चाहता है
- सुबह से लेकर शाम तक वह भी हमारी मर्जी के मुताविक अपने बच्चों को छोडकर हमारे लिऐ हमारी सुख सुविधा और शौंक को पूरा करता है
- उसके बच्चे ताकते रहते है कि मेरे मॉ बाप कब आ रहै क्या ला रहें है कैसे है कहीं दीवार से तो नही ं गिर पडे कहीं कोई घटना के शिकार तो नही हो गऐ है ।
- विचार करें की कभी इतनी लंबी जिंदगी मै कभी तो सोचें कि एक दिन के लिए अपाहिज यानी मजदूर वे सहारा का रौल या प्रक्टिस करके देखें कैसा महसूस होता है शर्म या शौंक
अपाहिज नाम से नफरत क्यो ।
जब कोई मजदूरी करने वाला हाईक्वालिटी के लोगो के पास से गुजरता है तब नांक ऑख लेफ्ट राइट करने लगते है वह यह कि वो पसीना वहाकर आपका सुख संयोजन कर के आ रहा है छीछी तो उसे आपसे करना चाहिये शर्म तो उसे करनी चाहिए क्योंकि वह अपना दायित्व निभाकर आया है।
और आप अपनी अश्लीलता निभा रहे है जो उन्होने सोचा वह हम नही सोचते हमारी नकारात्मक वुद्धि है जवकि उनकी नहीं वह हनिर्मल विचार के लोग है
इसलिए वह हमारी नीव का पत्थर है अगर वे नीव से खिसक जाऐं तो हमारा मकान अर्थात व्वस्थायें ठप्प हो जाएगीं।
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