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प्रेम का टूटा धागा सावधान रहना।



प्रेम का टूटा धागा, सावधान रहना



प्रेम का टूटा धागा, सावधान रहना नमस्कार दोस्तो आपका स्वागत है। इस पोस्ट मै हम प्रेम से संवधित चर्चा के विषय में वात करते है जब धागा टूट जाए तो उसमे जोड आने से गांठ पड जाती हैै।

 प्रेम का टूटा धागा, सावधान रहना अचानक अचानक हमारे मीठे संवंध मैं खटास आ जाना टूटे हुए धागे की गांठ जैसा अटक जाया करती है। जो हमारे विश्वास मै नमक और घाव जैसी पीडा पैदा करती है। एक वार वात विगड जाने पर दूरदर्शिता वन ही जाती है। वह किसी भी तरह से ज्योंकि त्यों नहीं होती चाहे करोडो यतन भी किया जाए।  

प्रेम का टूटा धागा पूजनी चिडिया और राजा ब्रह्मदत्त का प्रसंग आता है ।
राजा ब्रह्मदत्त का महल काम्पिल्य नगर मै था उनके महल में एक पूजनी नाम की चिडिया रहती थी । वह तिर्यग्योनि मै उत्पन्न होने पर भी सब प्राणियो की बोली समझती थी।वहीं उसके एक बच्चा पैदा हुआ और उसी दिन रानी के भी एक कुमारने जन्म लिया। पूजनी नित्यप्रति समूद्र तटपर जाती और वहां से दो फल लाती थी।
उसमे से एक फल राजकुमार को दे देती और दूसरे से अपने बच्चे का पोषण करती।पूजनी का लाया हुआ फल अमृत के समान स्वादिष्टऔर वल तथा तेजकी बुद्धि करने वाला होता था।उस फल को खाकर राजपुत्र खूब हष्टपुष्ट हो गया । एक दिन मां उसे गोद मे लेकर घूमरही थी, इतने में बालककी दृष्टि पूजनी के बच्चे पर पडी  ।

राजकुमार अपने वाल्यस्वभाव से धाय की गोद से खिसक गया और बच्चे के साथ खेलने लगा । यहां अकेले में दबोचकर  उसने वच्चे को मार डाला और फिर वापिस मां कि गोद मैं चला गया।जब पूजनी फल लेकर लोटी तो देखा की राजकुमार ने उसका बच्चा मार डाला है ।
बच्चे की दुर्गति देखकर पूजनी की ऑखो में आसू भर गये और ब्याकुल होकर कहने लगी की क्षत्रियो का संग करना ठीक नही इनका विश्वास नही करना चाहिए यह राजकुमार कितना कृत्घन क्रूर विश्वास घाती है । में वदला लूंगी और पंजे से राजकुमार के दोनो नेत्र फोड दिये यह देखकर ब्रह्मदत्त ने विचार किया की राजकुमार से उसके कुकर्मका बदला ले लिया राजा ने कहा हमने तेरा अपराध किया तूने बदला ले लिया अब हम दोनो बराबर है ।कही मत जाना यही रहना ।
पूजनी बोली- राजा जब किसी से बैर बंधजाए तो उसकी चिकनी चुपडी बातो मे नहीं आना चाहिए  ऐसा करनेसे बैर दूर नही होता वह विश्वास करने वाला मारा जाता है । विश्वास घाती का विश्वास नहीं करना चाहिएऔर जो विश्वासनीय हो उसका अधिक विश्वास नही करना चाहिए

विश्वास के कारण उत्पन्न होनी वाली विपत्ति जीवन का समूल नाश कर देती है ।अत: आपसे आपस में बैर बंधगया मेल होना संभव नहीं है इसलिए यहां से सीघ्र ही जाना चाहिए ।

ब्रह्मदत्त ने कहा जो अपकार के बदले अपकार दे वह अपराधी नहीं माना जाता इससे तो अपकार करने वाला श्रणमुक्त माना जाता है ।

पूजनी-- जिसका अपकार किया जाता है और जो अपकार करता है उसका मेल नही होता ।

ब्रह्मदत्त - ने कहा इससे तो बैर शांत हो जाता
क्योकि करने वाला और सहने वाले अपकारी का मेल तो समभव है ।यदिआपस मै बैर वाले  साथ साथ रहें तो बैर नही रहता है ।

 चिडिया-- ज्ञानी लोग कहते आपस की लाग डांट के कारण वने बैर वडवानल किसी तरह शांत  नहीं होती गुस्सा की आग धन और समझाने से शांत नही होती है ।

धन्यवाद,

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