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उल्लू की औरत कहानी।

 उल्लू की कहानी 


उल्लू की कहानी हैलो दोस्तो स्वागत् है आपका इस पोस्ट मैंअगर आप ऐसी ही कहानी पढ़ना पसंद करते हैं तो इस आर्टिकल को जरूर वॉच करें  प्राचीन प्रचलित बाते जो परिणाम स्वरूप अपना गर्भित सार  सजोकर रखती हैं। एवं उसका सटीक विवरण उजागर करती हैं। जो आज के इंसान मैं और इंसाफ मै मौंर कौंडी का अंतर अर्थात (सोना एवं लोहा) के मूल्य का अंतर प्रकट करतीं है। चलिए इस बेस्ट कहानी को शुरू करते हैं यह कहानी आपको पसंद आए तो अंत तक जरूर पढ़ें  

उल्लू की कहानी 

आज के कुछ लोग स्वार्थ सिद्धि करने के लिए यह तो उल्लू की औरत है झूूंठ कहकर जान बूझकर अपना शौर्य खो देते हैै। परंतु झूंठ का परिणाम हाथ मे नहीं होता है। इसलिए अंतत: पछताने के अलावा मिलता ही क्या है हमारे प्रजातंत्र मै झूूंठ का एक ऐसा बीज वो दिया गया जिसका अंकुर असीम गहराई तक जड जमा चुका है । इस जड़ सेेे उत्पन्न होनेे वाला विशाल विनाशकारी पेड़ जिससे  मानव और विवेक का पतन  हो रहा है

उल्लू की औरत नकारात्मक बुद्धि समाज का पतन बन गई है ,यह ज्यादा गरीब निराश्रित दलित एवं सामान्य वर्ग के आम लोगो के लिए काले नांग का जहर है ।
जो लाईलाज है इसकी कोई वैक्सीन त्यार करने वाली कंम्पनी  निर्मित नहीं हो सकी।
     

उल्लू की औरत कहानी।

     

चलिए शुरू करते है--एक समय एक सेठ जी अपनी बहू को लिवाने के लिऐ गए।पुराने समय मे रास्ते टेढे मेढे घेरेदार एवं उबड खाबड हुआ ही करते थे। लोटते वक्त सेठ जी के समधी ने एक पगडंडी रास्ता अमुक गांव से जाने के लिऐ बताया जो कम दूरी तय करके अपने घर पहुंचने के हिसाब से सही था।


सेठ जी उस गांव से गुजरे तो उस गांव में अच्छे मकान कम थे एवं खंडहर मकान  ज्यादा पडे हुऐ थे। सेठ आश्चर्य से अरे! यह  गांव वीरान क्यो है यह किसके मकान है । इस अवस्था में क्यों पड़े हुए हैं क्या इनको कोई बनाना नहीं चाहता है। या बनाने वाले   नहीं हैं। क्या कारण है जो इस तरह टूटे-फूटे हुए पड़े हुए हैं। तभी पेड पर से उल्लू हूं हूं हूं हूं करके वोला-अरे मेरी औरत को कहां लिऐ जा रहे हो। सेठ जी चौककर कौन हैं तब उल्लू बोला हूं हूं हूं हूं मै हूँ यहां का उल्लू , मेरी औरत को कहां ले जा रहे हो। शर्म नहीं आती है आगे बढ़े तो आंखें फोड़ दूंगा सेठ वही रुक गए, सेठ वोला क्या वक रहे उल्लू ।
उल्लू ने कहा- सेठ तुम क्या बक रहे थे मेरे इस सुंदर से गांव का बदनाम क्यों कर रहे हो। बदनाम के साथ-साथ मेरी औरत को लेकर कहां जा रहे हो


सेठजी---
क्या बात कर रहे हो मेरी बहू एक उल्लू की औरत कैसे हो सकती है तब उल्लू वोला मैं कुछ नहीं जानता  हमारे गांव के लोग जो फैसला कर देंगे मैं वही मंजूर करूंगा। तुम मेरी औरत को लेकर नहीं जा सकते हो।

 उल्लू बोला अरे सेठ गांव मैं जाकर पंचायत वुलाओ अगर गांव वाले कह देंगे की औरत मेरी नहीं है  तो मैं मान जाऊंगा। अगर फैसला मेरी ओर होता है तो औरत मेरी होगी, यदि नहीं तो अपनी बहू को तुम ले जाना।

सेठ जी को संतोष आया ठीक है ऐसा ही करता हूं और मन में सोचने लगे। ऊल्लू क्या करेगा गांव के लोग तो भला हैं ,सेठ ने सभी को घटना से अवगत कराते हुए पंचायत का निवेदन किया। गांव वालों ने सेठ जी से कहा चलो हम चलते हैं। लोगो ने आपस में सलाह मशविरा किया की देखो उल्लू अपने गांव का है पंचायत उल्लू की तरफ हो क्योकि अपने छोटे२ बच्चे है अगर फैसला उल्लू की तरफ का नहीं हुआ तो वह सारे गांव के बच्चों के कपडे उठाकर अपनी तांत्रिक विधि से मार डालेगा।

सभी ने इस बात का समर्थन किया और पंचायत शुरू की, सारी बातें पूछीं गई और अंत में एक ही फैसला सुनाया।

 सभी  एक स्वर में औरत उल्लू की है सेठ जी चक्कर खा कर गिर पडे।वेचारा सेठ निराशा की नदी मै गोते खाने लगा। और चुपचाप यह सोचने लगा की मेरे घर गांव वाले क्या कहेंगे और मैं क्या जवाव दूंगा की एक उल्लू को अपनी बहू दे दी।

सेठजी संभलकर उठे और चुपचाप चल पडे तभी हूं हूं हूं हूं करके उल्लू वोला अरे सेठ जी सुनो सुनो आपका उत्तर मिल गया यह खंडहर मकान उन्हीं लोगो के है जिन्होने औरत उल्लू की है पंचायत की सदा सत्य वोलो असत्य का परिणाम घर मकान क्या सातों पीढी को खंडहर मै वदल देता है सेठ जी मुझे माफ करना अपनी बहू को ले जाओ कहीं मनुष्य की स्त्री एक पक्षी (उल्लू की औरत) बन सकती है।

आज का समय कुछ इस प्रकार ही है लोग उल्लू की तरफ वाली बातें करके गरीब लोगों को सता रहे हैं।आपको पोस्ट कैसी लगी कमेंट जरूर करें हम ज्ञानवर्धक पोस्टें डालते रहते है ।


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